Monday, September 9, 2013

राही

photo Courtesy- 


  कदम उठाये तो डगमगाया ,
चलने लगा तो लड़खड़ाया 
कुछ हाथ थे थामने कोकुछ दिवार पीठ टिकाने को,

आँख उठाई सिर्फ  रास्ते थे ,
कुछ सीधे कुछ मुड़ते ,कुछ सपाट,
 कुछ चढ़ते  उतरते और पथरीले ,

क़िताबो की कहानियो नेअन्तर्नाद  ने ,कहा तुम अलग हो,
जो नई दिशा ढूंढ़ते हैपैरोँ  के निशान छोड़ते है  
शुमार उनमे हो तुम । 

सब छुटे पीछेमै  चला अकेला 
खुद को जुदा तो पाया पर डर था
संकोच भी और खुद को भरोसा दिलाना था ,

सूरज की जलन नेहवा की सिहरन ने ,
और तीर की तरह चुभते शब्दबाणो  ने  ,
मेरे पथ की पहचान करायी ,

दिल में भूचाल है, 
सोच नयी, कुछ  करने का उबाल है 

असंभव अब वापस  लौटना ,
मै राही अब बिलकुल तैयार हूँ  । 
             -आदित्य कृष्ण


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