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कदम उठाये तो डगमगाया ,
चलने लगा तो लड़खड़ाया
कुछ हाथ थे थामने को, कुछ दिवार पीठ टिकाने को,
आँख उठाई सिर्फ रास्ते थे ,
कुछ सीधे , कुछ मुड़ते ,कुछ सपाट,
कुछ चढ़ते उतरते और पथरीले ,
क़िताबो की कहानियो ने, अन्तर्नाद ने ,कहा तुम अलग हो,
जो नई दिशा ढूंढ़ते है, पैरोँ के निशान छोड़ते है
शुमार उनमे हो तुम ।
सब छुटे पीछे, मै चला अकेला
खुद को जुदा तो पाया , पर डर था
संकोच भी और खुद को भरोसा दिलाना था ,
सूरज की जलन ने, हवा की सिहरन ने ,
और तीर की तरह चुभते शब्दबाणो ने ,
मेरे पथ की पहचान करायी ,
दिल में भूचाल है,
दिल में भूचाल है,
सोच नयी, कुछ करने का उबाल है
असंभव अब वापस लौटना ,
मै राही अब बिलकुल तैयार हूँ ।
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