Sunday, September 22, 2013

रंगबिरंगी रोटियाँ


Based on Indian political system, this poem explains the offerings promised by our political leaders and,
 our helplessness to accept them.



रोटियाँ पड़ी है  रंगबिरंगी , चुनने की मजबूरी है । 

हर    दाने में  लिखा है खाने वाले का नाम ,
 यहाँ तो खिलानेवालो ने अपने मुहर लगाये है । 

कोई हरा, कोई लाल , कोई केशरिया  लेकर  आया है ,
रंगो की  इस बारिश में, कुछने तो हर रंग  पाया है ,
फिर भी कहते हम एक रंग के , ऐसी दुविधा में फंसाया है । 

हम  क्या चाहते नहीं पूछा ,  सब अपना  राग ही गाते है ,
चोर-चोर मौसेरे भाई , वो हमे ही ये  सिखलाते है । 

हास्यापद है जो ,वो बार बार   दोहराते है ,
शियार और गीदर के झगड़े में ,
शेर-चीते मात खाते है । 

कौवे नोचते बोटियाँ ,  इधर की उधर फैलाते है ,
हाथ लगे जितना जिधर से , झटपट समेटते जाते है ,

राहगीरोँ को बहला फूसला  कर, अपनी राह बनाते है,
भूखे है खुद ना  जाने किसके , और हमे दाने  गिराते है ,

  रोटियाँ पड़ी है  रंगबिरंगी , चुनने की मजबूरी है । 

                                             -आदित्य कृष्ण

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