Based on Indian political system, this poem explains the offerings promised by our political leaders and,
रोटियाँ पड़ी है रंगबिरंगी , चुनने की मजबूरी है ।
हर दाने में लिखा है खाने वाले का नाम ,
यहाँ तो खिलानेवालो ने अपने मुहर लगाये है ।
कोई हरा, कोई लाल , कोई केशरिया लेकर आया है ,
रंगो की इस बारिश में, कुछने तो हर रंग पाया है ,
फिर भी कहते हम एक रंग के , ऐसी दुविधा में फंसाया है ।
हम क्या चाहते नहीं पूछा , सब अपना राग ही गाते है ,
चोर-चोर मौसेरे भाई , वो हमे ही ये सिखलाते है ।
हास्यापद है जो ,वो बार बार दोहराते है ,
शियार और गीदर के झगड़े में ,
शेर-चीते मात खाते है ।
कौवे नोचते बोटियाँ , इधर की उधर फैलाते है ,
हाथ लगे जितना जिधर से , झटपट समेटते जाते है ,
राहगीरोँ को बहला फूसला कर, अपनी राह बनाते है,
भूखे है खुद ना जाने किसके , और हमे दाने गिराते है ,
रोटियाँ पड़ी है रंगबिरंगी , चुनने की मजबूरी है ।